जल एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण हेतु स्थानीय समुदाय के साथ सतत संवाद-समझ विकसित कर कारगर कार्यान्वयन पर बल
जगदलपुर 11 नवम्बर 2024/ जल और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए जरूरी है। यह समय की आवश्यकता है कि हम सभी मिलकर इस दिशा में कदम बढ़ाएं और अपने परिवेश के साथ एक सामंजस्यपूर्ण संबंध स्थापित करें। यह बात कलेक्टर श्री हरिस एस ने कलेक्टोरेट के प्रेरणा सभागार में जिला प्रशासन द्वारा आयोजित जल एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर एक दिवसीय कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए कही। कार्यशाला के आरंभ में सीईओ जिला पंचायत सुश्री प्रतिष्ठा ममगाई ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का असर अब दिखने लगा है, जिससे मानसून, ठंड और गर्मी का नियमित तौर पर नहीं होना दिखाई दे रहा है। इसका प्रभाव सर्वाधिक कृषि पर पड़ रहा है और कई गम्भीर समस्याएं निर्मित हो रही है। इसके निदान के लिए व्यापक जनजागरूकता सहित सकारात्मक प्रयास जरूरी है।
कार्यशाला में डीएफओ श्री उत्तम गुप्ता ने कहा कि जीवन प्रकृति से जुड़ा है और प्रकृति वन एवं जल पर निर्भर है। इसलिए वन एवं जल के संरक्षण पर ध्यान केंद्रीत करना आवश्यक है। इस दिशा में जनजातीय समुदाय की भागीदारी सबसे ज्यादा है जो प्रकृति से जुड़ाव के साथ सजग प्रहरी की भूमिका निभा रहे हैं। इसमें सभी की सहभागिता सुनिश्चित करना अत्यंत जरूरी है ताकि भावी पीढ़ी के लिए जल एवं प्राकृतिक संसाधन सुलभ रहे। इस मौके पर संचालक कांगेर घाटी नेशनल पार्क श्री चूड़ामणि सिंह ने नेचुरल रिसोर्स मैनेजमेंट में स्थानीय समुदाय की व्यापक सहभागिता पर जोर देते हुए सकारात्मक प्रयास किए जाने की आवश्यकता बताई।
कार्यशाला के दौरान वक्ताओं ने विचार रखते हुए कहा कि देश और दुनिया भर में जल और प्राकृतिक संसाधनों की कमी एक गंभीर समस्या बन गई है। जल संकट की चुनौती दिनों-दिन बढ़ रही है, जिससे कृषि, उद्योग और घरेलू जीवन प्रभावित हो रहा है। भारत जैसे देशों में जहां मानसून पर जल आपूर्ति निर्भर करती है, वहां सूखा और असमान जल वितरण जैसे मुद्दों ने इसे और जटिल बना दिया है। प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और पर्यावरणीय क्षति अनियंत्रित शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और बढ़ती जनसंख्या के कारण वन, खनिज और मृदा जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर भारी दबाव पड़ा है। इनके अत्यधिक दोहन से पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो रहा है, जिसका नकारात्मक प्रभाव मानव स्वास्थ्य और कृषि पर पड़ा है। इसे मद्देनजर रखते हुए सरकार द्वारा जल शक्ति अभियान, जलग्रहण क्षेत्र मिशन, मनरेगा, जल जीवन मिशन तथा वन महोत्सव जैसे कई प्रयास किए जा रहे हैं। जल संरक्षण के लिए तालाब, कुएं और बांधों का पुनर्जीवन, वर्षा जल संचयन और सूक्ष्म सिंचाई योजनाओं पर जोर दिया जा रहा है। विषय-विशेषज्ञों ने कार्यशाला में जोर दिया कि जनता के सहयोग के बिना जल संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण संभव नहीं है। छोटे-छोटे प्रयास जैसे नल को बंद रखना, बारिश के पानी का संरक्षण, ऊर्जा बचत और पौधरोपण एवं पौध संरक्षण जैसे कार्यों के माध्यम से हर व्यक्ति अपना योगदान दे सकता है। इस दिशा में स्थानीय समुदाय के साथ सतत संवाद-समझ विकसित कर कार्यान्वयन पर ध्यान केन्द्रित किया जाए।
इस कार्यशाला का उद्देश्य विभिन्न विभागों के बीच समन्वय और संवाद स्थापित करना था और यह सुनिश्चित करना था कि इस प्रशिक्षण का लाभ हर हितधारक तक पहुँचे। इसके लिए एक प्रशिक्षण ढांचा स्थापित किया जाएगा, जिसमें ब्लॉक स्तर पर विभागों के साथ-साथ समुदाय से भी नोडल अधिकारी नियुक्त किए जाएंगे। इसके साथ-साथ प्रदर्शन भी किए जाएंगे ताकि जागरूकता और कार्य को बेहतर ढंग से समझा और अपनाया जा सके। यह कार्यशाला जिला प्रशासन द्वारा ट्रांसफार्मिंग रूरल इंडिया फाउंडेशन और विभिन्न स्वैच्छिक संगठनों के सहयोग से आयोजित किया गया। कार्यशाला में जिला प्रशासन के विभिन्न विभागों के अधिकारी-कर्मचारियों सहित स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधी तथा पंचायत पदाधिकारियों एवं जलग्रहण क्षेत्र मिशन से जुड़े ग्रामीणों ने सक्रिय हिस्सा लिया।